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कविता

महलों पर कुटियों को वारो

माखनलाल चतुर्वेदी


महलों पर कुटियों को वारो
पकवानों पर दूध-दही,
राज-पथों पर कुंजें वारों
मंचों पर गोलोक मही।

सरदारों पर ग्वाल, और
नागरियों पर बृज-बालाएँ
हीर-हार पर वार लाड़ले
वनमाली वन-मालाएँ

छीनूँगी निधि नहीं किसी -
सौभागिनि, पुण्य-प्रमोदा की
लाल वारना नहीं कहीं तू
गोद गरीब यशोदा की।


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